Sunday 17 December 2017

*कहीं आप अनजाने में अपने परिवार को विषैला दूध तो नहीं पिला रहे हैं?*

मथुरा के ‘पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय एवं गौ अनुसंधान संस्थान’ में नेशनल ब्यूरो ऑफ जैनेटिक रिसोर्सेज, करनाल (नेशनल काउंसिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च - भारत सरकार) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. देवेन्द्र सदाना द्वारा एक प्रस्तुति 4 सितम्बर को दी गई।

मथुरा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के सामने दी गई प्रस्तुति में डॉ. सदाना ने जानकारी दी किः

अधिकांश विदेशी पशु (हॅालस्टीन, जर्सी आदि) के दूध में ‘बीटा कैसीन A1’ नामक प्रोटीन पाया जाता है जिससे अनेक असाध्य रोग पैदा होते हैं। पांच रोग होने के स्पष्ट प्रमाण वैज्ञानिकों को मिल चुके हैं –

*1. इस्चीमिया हार्ट डिसीज़* (रक्तवाहिका नाड़ियों का अवरुद्ध होना)
*2. मधुमेह-मिलाईटिस या डायबिट़िज टाईप-1* (पैंक्रिया का खराब होना जिसमें इन्सूलीन बनना बन्द हो जाता है)
*3. ऑटिज़्म* (मानसिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म होना)
*4. सिजोफ्रेनिया* (स्नायु कोषों का नष्ट होना तथा अन्य मानसिक रोग)
*5. सडन इनफैण्ट डैथ सिंड्रोम* (बच्चे किसी ज्ञात कारण के बिना अचानक मरने लगते हैं)

टिप्पणीः विचारणीय है कि हानिकारक A1 प्रोटीन के कारण यदि मनुष्य का सुरक्षा तंत्र नष्ट हो जाता है तो फिर न जाने कितने ही और रोग भी हो रहे होंगे, जिन पर अभी खोज नहीं हुई।

*दूध की संरचना*

आमतौर पर दूध में,
83 से 87% तक पानी
3.5 से 6% तक वसा (फैट)
4.8 से 5.2% तक कार्बोहाइड्रेड

3.1 से 3.9% तक प्रोटीन होती है। इस प्रकार कुल ठोस पदार्थ 12 से 15% तक होता है। लैक्टोज़ 4.7 से 5.1% तक है। शेष तत्व अम्ल, एन्जाईम विटामिन आदि 0.6 से 0.7% तक होते हैं।

गाय के दूध में पाए जाने वाले प्रोटीन 2 प्रकार के हैं। एक ‘केसीन’ और दूसरा है ‘व्हे’ प्रोटीन। दूध में केसीन प्रोटीन 4 प्रकार का मिला हैः

अल्फा एस 1 (39 से 46%)
अल्फा एस 2 (8 से 11%)
बीटा कैसीन (25 से 35%)
गामा केसीन (8 से 15%)

गाय के दूध में पाए गए प्रोटीन में लगभग एक तिहाई ‘बीटा कैसीन’ नामक प्रोटीन है। अलग-अलग प्रकार की गउओं में अनुवांशिकता (जैनेटिक कोड) के आधार पर ‘केसीन प्रोटीन’ अलग-अलग प्रकार का होता है जो दूध की संरचना को प्रभावित करता है, या यूं कहे कि उसमें गुणात्मक परिवर्तन करता है। उपभोक्ता पर उसके अलग-अलग प्रभाव हो सकते हैं।

*बीटा कैसीन A1, A2 में अन्तर क्या है?*

बीटा कैसीन के 12 प्रकार ज्ञात हैं जिनमें A1 और A2 प्रमुख हैं। A2 की एमिनो एसिड शृंखला (कड़ी) में 67 वें स्थान पर ‘प्रोलीन’ होता है। जबकि A1 प्रकार में यह ‘प्रोलीन’ के स्थान पर विषाक्त ‘हिस्टिडीन’ है। A1 में यह कड़ी कमजोर होती है तथा पाचन के समय टूट जाती है और विषाक्त प्रोटीन ‘बीटा केसो मार्फीन 7’ बनाती है।

*विदेशी गोवंश विषैला क्यों है?*

जैसा कि शुरू में बतलाया गया है कि विदेशी गोवंश में अधिकांश गउओं के दूध में ‘बीटा कैसीन A1’ नामक प्रोटीन पाया गया है। हम जब इस दूध को पीते हैं और इसमें शरीर के पाचक रस मिलते हैं व इसका पाचन शुरू होता है, तब इस दूध के A1 नामक प्रोटीन की 67वीं कमजोर कड़ी टूटकर अलग हो जाती है और इसके ‘हिस्टिडीन’ से ‘बी.सी.एम.7’ (बीटा केसो माफिन 7) का निर्माण होता है। सात कड़ियों वाला यह विषाक्त प्रोटीन ‘बी.सी.एम.7’ पूर्वोक्त सारे रोगों को पैदा करता है। शरीर के सुरक्षा तंत्र को नष्ट करके अनेक असाध्य रोगों का कारण बनता है।

*भारतीय गोवंश विशेष क्यों?*

करनाल स्थित भारत सरकार के करनाल स्थित ब्यूरो के द्वारा किए गए शोध के अनुसार भारत की 98% नस्लें A2 प्रकार के प्रोटीन वाली अर्थात् विषरहित हैं। इसके दूध की प्रोटीन की एमीनो एसिड चेन (बीटा कैसीन A2) में 67वें स्थान पर ‘प्रोलीन’ है और यह अपने साथ की 66वीं कड़ी के साथ मजबूती के साथ जुड़ी रहती है तथा पाचन के समय टूटती नहीं। 66वीं कड़ी में एमीनो ऐसिड ‘आइसोल्यूसीन’ होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि भारत की 2% नस्लों में A1 नामक एलिल (विषैला प्रोटीन) विदेशी गोवंश के साथ हुए ‘म्यूटेशन के कारण’ आया हो सकता है।

एन.बी.ए.जी.आर. – करनाल द्वारा भारत की 25 नस्लों की गउओं के 900 सैंम्पल लिए गए थे। उनमें से 97-98 % A2 A2 पाए गए गथा एक भी A1A1 नहीं निकला। कुछ सैंम्पल A1A2 थे जिसका कारण विदेशी गोवंश का सम्पर्क होने की सम्भावना प्रकट की जा रही है।

*गुणसूत्र* (chromosome)

गुणसूत्र जोड़ों में होते हैं, अतः स्वदेशी-विदेशी गोवंश की DNA जांच करने पर
‘A1 A1’
‘A1 A2’
‘A2 A2’
के रूप में गुणसूत्रों की पहचान होती है। स्पष्ट है कि विदेशी गोवंश ‘A1A1’ गुणसूत्र वाला तथा भारतीय ‘A2A2’ है।

केवल दूध के प्रोटीन के आधार पर ही भारतीय गोवंश की श्रेष्ठता बतलाना अपर्याप्त होगा। क्योंकि बकरी, भैंस, ऊँटनी आदि सभी प्राणियों का दूध विषरहित A2 प्रकार का है। भारतीय गोवंश में इसके अतिरिक्त भी अनेक गुण पाए गए हैं। भैंस के दूध के ग्लोब्यूल अपेक्षाकृत अधिक बड़े होते हैं तथा मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव करने वाले हैं। आयुर्वेद के ग्रन्थों के अनुसार भी भैंस का दूध मस्तिष्क के लिए अच्छा नहीं, वातकारक (गठिया जैसे रोग पैदा करने वाला), गरिष्ठ व कब्जकारक है। जबकि गो दूग्ध बुद्धि, आयु, स्वास्थ्य व सौंदर्य वर्धक बतलाया गया है।

भारतीय गोवंश का दूध अनेक गुणों वाला है -

*1. बुद्धिवर्धक*
खोजों के अनुसार भारतीय गउओं के दूध में ‘सैरिब्रोसाईट’ नामक तत्व पाया गया है जो मस्तिष्क के ‘सैरिब्रम' को स्वस्थ-सबल बनाता है। यह स्नायु कोषों को बल देने वाला, बुद्धि वर्धक है।

*2. गाय के दूध से फुर्ती*
जन्म लेने पर गाय का बछड़ा 2 घंटे में ही चलने लगता है जबकि भैंस का पाडा 2 दिन बाद  चलता है। स्पष्ट है कि गाय एवं उसके दूध में भैंस की अपेक्षा अधिक फुर्ती होती है।

*3. आँखों की ज्योति, कद और बल को बढ़ाने वाला*
भारतीय गौ की आँत 180 फुट लम्बी होती है। गाय के दूध में केरोटीन नामक एक ऐसा उपयोगी एवं बलशाली पदार्थ मिलता है जो भैंस के दूध से कहीं अधिक प्रभावशाली होता है। बच्चों की लम्बाई और सभी के बल को बढ़ाने के लिए यह अत्यन्त उपयोगी होता है। आँखों की ज्योति को बढ़ाने के लिए यह अत्यन्त उपयोगी है। यह कैंसर रोधक भी है।

*4. असाध्य बिमारियों की समाप्ति*
गाय के दूध में स्टोनटियन नामक ऐसा पदार्थ भी होता है जो विकिरण (रेडियेशन) प्रतिरोधक होता है। यह असाध्य बिमारियों को शरीर पर आक्रमण करने से रोकने का कार्य भी करता है। रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है जिससे रोग का प्रभाव क्षीण हो जाता है।

*5. रामबाण है गाय का दूध – ओमेगा 3 से भरपूर*
वैज्ञानिक अनुसंधान के बाद यह सिद्ध हो चुका है कि फैटी एसिड ओमेगा 3 (यह एक ऐसा पौष्टिकतावर्धक तत्व है, जो सभी रोगों की समाप्ति के लिए रामबाण है) केवल गो माता के दूध में सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है। आहार में ओमेगा 3 से डी. एच. तत्व बढ़ता है। इसी तत्व से मानव-मस्तिष्क और आँखों की ज्योति बढ़ती है। डी. एच. में दो तत्व ओमेगा 3 और ओमेगा 6 बताये जाते हैं। मस्तिष्क का संतुलन इसी तत्व से बनता है। आज विदेशी वैज्ञानिक इसके कैप्सूल बनाकर दवा के रूप में इसे बेचकर अरबों-खरबों रुपये का व्यापार कर रहे हैं।

*6. विटामिन से भरपूर-माँ के दूध के समकक्ष*
प्रो. एन. एन. गोडबोले के अनुसार गाय के दूध में अल्बुमिनाइड, वसा, क्षार, लवण तथा कार्बोहाइड्रेड तो हैं ही साथ ही समस्त विटामिन भी उपलब्ध हैं। यह भी पाया गया कि देशी गाय के दूध में 8% प्रोटीन, 0.7% खनिज व विटामिन ए, बी, सी, डी व ई प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं, जो गर्भवती महिलाओं व बच्चों के लिए अत्यन्त उपयोगी होते हैं।

*7. कॅालेस्ट्राल से मुक्ति*
वैज्ञानिकों के अनुसार कि गाय के दूध से कोलेस्ट्रोल नहीं बढ़ता। हृदय रोगियों के लिए यह बहुत उपयोगी माना गया है।

*8. टी.बी. और कैंसर की समाप्ति*
क्षय (टी.बी) रोगी को यदि गाय के दूध में शतावरी मिलाकर दी जाये तो टी.बी. रोग समाप्त हो जाता है। एसमें एच.डी.जी.आई. प्रोटीन होने से रक्त की शिराओं में कैंसर प्रवेश नहीं कर सकता।

*9. हृदय रोगियों के लिए गाय का दूध ही सर्वोत्तम*
इन्टरनेशनल कार्डियोलॅाजी के अध्यक्ष डा. शान्तिलाल शाह ने कहा है कि भैंस के दूध में लाँगचेन फेट होता है जो नसों में जम जाता है। फलस्वरूप हार्टअटैक की सम्भावना अधिक हो जाती ही। इसलिए हृदय रोगियों के लिए गाय का दूध ही सर्वोत्तम है। भैंस के दूध के ग्लोब्यूल्ज़ भी आकार में अधिक बड़े होते हैं तथा स्नायु कोषों के लिए हानिकारक हैं।

*10.  विटामिन B12*
B12 भारतीय गाय की बड़ी आंतों में अत्यधिक पाया जाता है, जो व्यक्ति को निरोगी एवं दीर्घायु बनाता है। इससे बच्चों एवं बड़ों को शारीरिक विकास में बढ़ोतरी तो होती ही है साथ ही खून की कमी जैसी बिमारियां (एनीमिया) भी ठीक हो जाती है।

*11. गाय के दूध में दस गुण*
चरक संहिता (सूत्र 27/217) में गाय के दूध में दस गुणों का वर्णन है-

स्वादु, शीत, मृदु, स्निग्धं बहलं श्लक्ष्णपिच्छिलम्।
गुरु मंदं प्रसन्नं च गल्यं दशगुणं पय॥

अर्थात्- गाय का दूध स्वादिष्ट, शीतल, कोमल, चिकना, गाढ़ा, श्लक्ष्ण, लसदार, भारी और बाहरी प्रभाव को विलम्ब से ग्रहण करने वाला तथा मन को प्रसन्न करने वाला होता है।

*12. केवल भारतीय देसी नस्ल की गाय का दूध ही पौष्टिक*
करनाल के नेशनल ब्यूरो आफ एनिमल जैनिटिक रिसोर्सेज (एन.बी.ए.जी.आर.) संस्था ने अध्ययन कर पाया कि भारतीय गायों में प्रचुर मात्रा में A2 एलील जीन पाया जाता हैं, जो उन्हें स्वास्थ्यवर्धक दूध उत्पन्न करने में मदद करता है। भारतीय नस्लों में इस जीन की फ्रिक्वेंसी 100% तक पाई जाती है।

*13. कोलेस्ट्रम (खीस) में है जीवनी शक्ति*
प्रसव के बाद गाय के दूध में ऐसे तत्व होते हैं जो अत्यन्त मूल्यवान, स्वास्थ्यवर्धक हैं। इसलिए इसे सूखाकर व इसके कैप्सूल बनाकर, असाध्य रोगों की चिकित्सा के लिए इसे बेचा जा रहा है। यही कारण है कि जन्म के बाद बछड़े, बछिया को यह दूध अवश्य पिलाना चाहिए। इससे उसकी जीवनी शक्ति आजीवन बनी रहती है। इसके अलावा गौ उत्पादों में कैंसर रोधी तत्व एनडीजीआई भी पाया गया है जिस पर US पेटेन्ट प्राप्त है।

🌱तुलसी एक,फायदे अनेक

हमारे शास्त्रों के अनुसार तीन सुरक्षा चक्र पहली गौ माता दूसरी तुलसी तीसरी रसोईघर के मसाले (औषधि)

तुलसी

तुलसी मुख्य रूप से पांच प्रकार के पायी जाती है ! श्याम तुलसी, राम तुलसी, श्वेत/विश्नू तुलसी, वन तुलसी, और नींबू तुलसी ।

यह संसार की एक बेहतरीन एंटी-ऑक्सीडेंट , एंटी- बैक्टीरियल, एंटी- वायरल , एंटी- फ्लू, एंटी- बायोटिक , एंटी-इफ्लेमेन्ट्री व एंटी – डिजीज है ।

✔तुलसी अर्क के दो बून्द एक ग्लास पानी में या तीन बून्द एक लीटर पानी में डाल कर पांच मिनट के बाद उस जल को पीना चाहिए। इससे पेयजल विष् और रोगाणुओं से मुक्त होकर स्वास्थवर्धक पेय हो जाता है ।

✔तुलसी अर्क २०० से अधिक रोगो में लाभदायक है । जैसे के फ्लू , स्वाइन फ्लू, डेंगू , जुखाम , खासी , प्लेग, मलेरिया , जोड़ो का दर्द, मोटापा, ब्लड प्रेशर , शुगर, एलर्जी , पेट के कीड़ो , हेपेटाइटिस , जलन, मूत्र सम्बन्धी रोग, गठिया , दम, मरोड़, बवासीर , अतिसार, आँख का दर्द , दाद खाज खुजली, सर दर्द, पायरिया नकसीर, फेफड़ो सूजन, अल्सर , वीर्य की कमी, हार्ट ब्लोकेज आदि ।

✔तुलसी एक बेहतरीन विष नाशक तथा शरीर से हानिकारक विष (toxins ) को बाहर निकालती है ।

✔तुलसी स्मरण शक्ति को बढ़ाता है ।

✔तुलसी शरीर के लाल रक्त सेल्स (Haemoglobin) को बढ़ने में अत्यंत सहायक है ।

✔तुलसी भोजन के बाद एक बूँद सेवन करने से पेट सम्बन्धी बीमारिया बहोत काम लगाती है।

✔तुलसी के 4 – 5 बूँदे पीने से महिलाओ को गर्भावस्था में बार बार होने वाली उलटी के शिकायत ठीक हो जाती है ।

✔आग के जलने व किसी जहरीले कीड़े के कांटने से तुलसी को लगाने से विशेष रहत मिलती है।

✔दमा व खाँसी में तुलसी के दो बुँदे थोड़े से अदरक के रास तथा शहद के साथ मिलकर सुबह – दोपहर – शाम सेवन करे।

✔यदि मुँह में से किसी प्रकार की दुर्गन्ध आती हो तो तुलसी के एक बूँद मुँह में डाल ले दुर्गन्ध तुरंत दूर हो जाएगी।

✔दांत का दर्द, दांत में कीड़ा लगना , मसूड़ों में खून आना तुलसी के 4 – 5 बूँदे पानी में डालकर कुल्ला करना चाहिए।

✔कान का दर्द, कण का बहना, तुलसी हल्का गरम करके एक -एक बूंद कान में टपकाए।

✔नाक में पिनूस रोग हट जाता है, इसके अतिरिक्त फोड़े – फुंसिया भी निकल आती है, दोनों रोगो में बहुत तकलीफ होती है I तुलसी को हल्का सा गरम करके एक – एक बूंद नाक में टपकाएं।

✔गले में दर्द, गले व मुँह में छाले , आवाज़ बैठ जाना : तुलसी के 4 – 5 बूँदे गरम पानी में डालकर कुल्ला करना चाहिए।

✔सर दर्द, बाल क्हाड्णा, बाल सफ़ेद होना व सिकरी तुलसी की 8 – 10 मि.ली। हर्बल हेयर आयल के साथ मिलाकर सर, माथे तथा कनपटियो पर लगाये।

✔तुलसी के 8 – 10 बूँदे मिलकर शरीर में मलकर रात्रि में सोये , मच्छर नहीं काटेंगे।

✔कूलर के पानी में तुलसी के 8 – 10 बूँदे डालने से सारा घर विषाणु और रोगाणु से मुक्त हो जाता है, तथा मक्खी – मच्छर भी घर से भाग जाते है।

✔जूएं व लिखे तुलसी और नीबू का रस समान मात्रा में मिलाकर सर के बालो में अच्छे तरह से लगाये I 3 – 4 घंटे तक लगा रहने दे। और फिर धोये अथवा रात्रि को लगाकर सुबह सर धोए।। जुएं व लिखे मर जाएगी।

✔त्वचा की समस्या में निम्बू रास के साथ तुलसी के 4 – 5 बूँदे डालकर प्रयोग करे।

✔तुलसी में सुन्दर और निरोग बनाने की शक्ति है। यह त्वचा का कायाकल्प कर देती है I यह शरीर के खून को साफ करके शरीर को चमकीला बनती है।

✔तुलसी की दो बूँदे एलो जैल क्रीम में मिलाकर चेहरे पर सुबह व रात को सोते समय लगाने पर त्वचा सुन्दर व कोमल हो जाती है तथा चेहरे से प्रत्येक प्रकार के काले धेरे, छाइयां , कील मुँहासे व झुरिया नष्ट हो जाती है।

✔सफ़ेद दाग : 10 मि.लि. तेल व नारियल के तेल में 20 बूँदें तुलसी डालकर सुबह व रात सोने से पहले अच्छी तरह से मले।

✔तुलसी के नियमित उपयोग से कोलेस्ट्रोल का स्तर कम होने लगता है, रक्त के थक्के जमने कम हो जाते है, व हार्ट अटैक और कोलैस्ट्रोल की रोकथाम हो जाती है।

✔तुलसी को किसी भी अच्छी क्रीम में मिला कर लगाने से प्रसव के बाद पेट पर बनने वाले लाइने ( स्ट्रेच मार्क्स ) दूर हो जाते है।
🌱तुलसी एक,फायदे अनेक।

अमर शहीद राष्ट्रगुरु, आयुर्वेदज्ञाता, होमियोपैथी ज्ञाता स्वर्गीय भाई राजीव दीक्षित जी के सपनो (स्वस्थ व समृद्ध भारत) को पूरा करने हेतु अपना समय दान दें

Tuesday 17 October 2017

Platelet deficiency - Dengue

*Platelet deficiency is not the cause of death in people suffering from Dengue*
According to International guidelines, unless a patient’s platelet count is below 10,000, and there is spontaneous, active bleeding, no platelet transfusion is required. The outbreak of dengue in the City and Hospital beds are full and families are seen running around in search of platelets for transfusion. However what most people do not realize is that the first line of treatment for dengue is not platelet transfusion. It, in fact, does more harm than good if used in a patient whose counts are over 10,000.
The primary cause of death in patients suffering from dengue is *capillary leakage*, which causes blood deficiency in the intravascular compartment, leading to multi-organ failure. At the first instance of plasma leakage from the intravascular compartment to the extravascular compartment, fluid replacement amounting to 20 ml per kg body weight per hour must be administered. This must be continued till the difference between the upper and lower blood pressure is over 40 mmHg, or the patient passes adequate urine. This is all that is required to treat the patient. Giving unnecessary platelet transfusion can make the patient more unwell.

“While treating dengue patients, physicians should remember the ‘Formula of 20' i.e. rise in pulse by more than 20; fall of BP by more than 20; difference between lower and upper BP of less than 20 and presence of more than 20 hemorrhagic spots on the arm after a tourniquet test suggest a high-risk situation and the person needs immediate medical attention.”

*Dengue fever is a painful mosquito-borne disease*. It is caused by any one of four types of dengue virus, which is transmitted by the bite of an infected female Aedes aegypti mosquito. Common symptoms of dengue include high fever, runny nose, a mild skin rash, cough, and pain behind the eyes and in the joints. However, some people may develop a red and white patchy skin rash followed by loss of appetite, nausea, vomiting, etc. Patients suffering from dengue should seek medical advice, rest and drink plenty of fluids. Paracetamol can be taken to bring down fever and reduce joint pains. However, aspirin or ibuprofen should not be taken since they can increase the risk of bleeding.

The risk of complications is in less than 1% of dengue cases and, if warning signals are known to the public, all deaths from dengue can be avoided.

*DENGUE NS1-Best test is NS1*
Cannot be false +ve
Is + from day 1 to 7 ideally.
If on day 1 is -ve, repeat it next day.
Always ask for ELISA based NS1 tests as card tests are misleading.

Value of IgG & IgM dengue-
In a pt with reduced platelets and looking "sick" on day 3 or 4 of illness, a very high titre of IgG with borderline rise in IgM signifies secondary dengue. These pts are more prone to complications.
In primary dengue IgG becomes + at end of 7 days, while IgM is + after day 4.

Immature Platelet fraction/IPF
A very useful test in Dengue for pts with thrombocytopenia.
If IPF in such a pt is > 10%, despite a pl count of 20, 000 he is out of danger & platelets will rise in 24 hrs
If its 6%, repeat the same next day. Now if IPF has increased to 8% his platelets will certainly increase within 48 hrs.
If its less then 5%, then his bone marrow will not respond for 3-4 days & may be a likely candidate for pl transfusion.
Better to do an IPF even with borderline low platelet count.

A low Mean Platelet volume or MPV means platelets are functionally inefficient and such pts need more attention.

Wednesday 30 August 2017

*बड़े काम की छोटी सी इलायची*

*बड़े काम की छोटी सी इलायची*

खराश : यदि आवाज बैठी हुई है या गले में खराश है, तो सुबह उठते समय और रात को सोते समय छोटी इलायची चबा-चबाकर खाएँ तथा गुनगुना पानी पीएँ। 

सूजन : यदि गले में सूजन आ गई हो, तो मूली के पानी में छोटी इलायची पीसकर सेवन करने से लाभ होता है। 

खाँसी : सर्दी-खाँसी और छींक होने पर एक छोटी इलायची, एक टुकड़ा अदरक, लौंग तथा पाँच तुलसी के पत्ते एक साथ पान में रखकर खाएँ। 

उल्टी : बड़ी इलायची पाँच ग्राम लेकर आधा लीटर पानी में उबाल लें। जब पानी एक-चौथाई रह जाए, तो उतार लें। यह पानी पीने से उल्टियाँ बंद हो जाती हैं। 

छाले : मुँह में छाले हो जाने पर बड़ी इलायची को महीन पीसकर उसमें पिसी हुई मिश्री मिलाकर जबान पर रखें। तुरंत लाभ होगा। 

बदहजमी : यदि केले अधिक मात्रा में खा लिए हों, तो तत्काल एक इलायची खा लें। केले पच जाएँगे और आपको हल्कापन महसूस होगा। 

जी मिचलाना : बहुतों को यात्रा के दौरान बस में बैठने पर चक्कर आते हैं या जी घबराता है। इससे निजात पाने के लिए एक छोटी इलायची मुँह में रख लें।

Friday 17 March 2017

तुलसी कौन थी?


तुलसी (पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था. वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी. एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा - स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प नही छोडूगी। जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये।

सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता । फिर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।

भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?

उन्होंने पूँछा - आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके, वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये।

सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्रार्थना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गयी।

उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा  – आज से इनका नाम तुलसी है, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में बिना तुलसी जी के भोग स्वीकार नहीं करुगा। तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे। और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है. देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है !